शनिवार, 20 नवंबर 2010

"entropy" और "मन"

 'एनट्रॉपी' किसी 'सिस्टम' के व्यवस्थित होने की अवस्था के बारे में जानकारी देता है। कोई सिस्टम जितना सुव्यवस्थित होगा उसकी entropy उतनी ही कम होगी,पर यह भी सच है कि entropy हमेशा बढ़ती रहती है, यानी कि कितना भी प्रयास करो system  हमेशा disorderliness की ओर ही अग्रसर रहता है | एक छोटे से उदाहरण से ऐसे समझ सकते हैं कि कार आप जितना साफ़ करोगे उसके गंदे होने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है।
           
कुछ कुछ यही स्थिति "मन" की भी रहती है। मन सदैव चंचल रहता है।विचारों का प्रवाह निरंतर बना रहता है और वे सदा मन को अस्थिर रखते हैं, यानी मन की entropy बढ़ाते रहते हैं ।मन की entropy कम करने का तरीका यही है कि जिस भी अवस्था में आप हैं,उसी में प्रसन्न रहें और मन को विचलित ना होने दें क्योंकि  आप जो कुछ भी नया करेंगे,शतप्रतिशत entropy को ही बढ़ाएंगेऔर चूंकि प्रकॄति का नियम है कि entropy या disorderliness सदैव बढ़ना ही है अतः यह बहुत कठिन कार्य है कि मन की अस्थिरता को ना बढ़ने दिया जाय ।परन्तु नियम संयम और निश्चित प्रकार की जीवन शैली से यह थोड़ा बहुत संभव है।
            
सच तो यह है कि सारी दुनिया की  entropy क्षण-प्रतिक्षण बढ़ती जा रही है और उसके maximum state को ही catastrophe का नाम दिया गया है।
             
यह पोस्ट लिखकर मैने अपने ब्लॉग की ,कम्प्यूटर की ,नेट की और आप लोगों की भी entropy ही बढ़ाई है। यही प्रकॄति है शायद।

2 टिप्‍पणियां:

  1. पहले यह पोस्ट नहीं पढ़ पाया था, थर्मोडायनामिक्स के दूसरे नियम का जीवन से सीधा सम्बन्ध है। समाज भी इसी का अनुसरण करता है।

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