सोमवार, 12 सितंबर 2011

"बस तुम और तुम"


सुबह भी तुम,
शाम भी तुम, 
तमाम उम्र का नाम भी तुम, 
गर ख्याल से भूले भी कभी,
तो उस ख्याल का नाम भी तुम,
आती सांस में तुम,
जाती सांस में भी तुम,
आस भी तुम, 
विश्वास भी तुम, 
आनन्द भी तुम, 
उन्माद भी तुम, 
कौतूहल भी तुम, 
सादगी भी तुम,
श्वेत भी तुम, 
श्याम भी तुम,
और अब तो, 
लगता है, 
’मै’  मै नही,
वह ’मै’  भी 'तुम’ ।

17 टिप्‍पणियां:

  1. जिन्दगी भी तुम और जिन्दगी का नाम भी तुम ......!
    पोस्ट भी तुम
    और टिप्पणी भी तुम
    हा..हा..हा..!

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  2. बेहद प्यारे शब्द सजाएँ हैं आपने "’मै’मै नही,वह ’मै’ भी 'तुम’।"
    शुभकामनायें ....सर

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  3. सम्पूर्ण समर्पण..
    सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  4. बहुत खूब ....समर्पण को खूबसूरती से दर्शाती हुई रचना

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  5. आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।

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  6. वह ’मै’ भी 'तुम’ । समर्पर्ण के भावो से सजी रचना....

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  7. क्या बात है, जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है ।

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  8. सम्पूर्ण समर्पण की प्रभावी अभिव्यक्ति..

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  9. वह ’मै’ भी 'तुम’ --- यह प्रेम भक्ति भाव का चरम है..

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  10. द्वैत से अद्वैत .... और इस की भी अगली स्थिति होगी "बस मैं और मैं"..... तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो ? हमीं हम हैं तो क्या हम हैं !

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