बुधवार, 19 दिसंबर 2012

" कल हो न हो..........."


दिनांक २१.१२.१२ को दुनिया खत्म हो जायेगी | कोई पिंड हमारी धरती से टकराएगा और हम खंड खंड हो बिखर जायेंगे | ऐसी भविष्यवाणी की गई है | कहते हैं 'माया कलेंडर' में २१.१२.१२ के बाद की तिथि ही अंकित नहीं है | 

ऐसा हो या न हो ,कौन जानता है परन्तु जब कभी भी अंत होगा तो ऐसे ही होगा | हम इतने आशावादी हैं और डरपोक भी कि इस कटु सत्य को मान लेने में अपनी पराजय समझते हैं | ऐसा हो क्यों नहीं सकता , इसके सम्बन्ध में अभी तक कोई तर्क नहीं दिया गया है | क़यामत अर्थात सभी का एक साथ अंत या मौत | जब किसी की मृत्यु होती है तब भी तो ऐसे ही होता है कि अचानक जीता जागता व्यक्ति सदा के लिए सो जाता है | संभव है कि सभी का अंत एक साथ हो जाए |

मृत्यु अथवा अकस्मात अंत की सच्चाई को स्वीकार कर लेना चाहिए | वही तो यात्रा का अंतिम पड़ाव है | 'यक्ष -युधिष्ठर' प्रश्नोत्तर से स्पष्ट ज्ञान मिलता है कि 'सबसे बड़ा सत्य है कि मृत्यु निश्चित है ' और 'सबसे बड़ा भ्रम है कि यह सत्यता केवल अन्य लोगों पर ही चरितार्थ होगी ' | हम सब एक दूसरे को झूठी दिलासा देते रहते हैं कि अरे !  कोई दुनिया -वुनिया ख़त्म नहीं होने वाली ,सब अफवाह है | ऐसा नहीं है , जब कभी भी ऐसा होगा ,अकस्मात ही होगा | 'एन्ट्रापी' हमेशा बढती जा रही है और अधिकतम 'एन्ट्रापी' को ही 'कैटेसट्राफी'  अर्थात क़यामत कहते हैं |

इतनी खूबसूरत दुनिया कभी न खत्म हो तो बेहतर है ,परन्तु बारी बारी हर एक की दुनिया तो खत्म होती ही रहती है | जब अंत सामने दिखता रहे तब समय अत्यंत  कम लगने लगता है | इस कम समय की मुख़्तसर सी ज़िन्दगी में हम अनायास ईर्ष्या द्वेष के चक्कर में पड़ अपनों से बैर करते रहते है , क्यों न सभी से प्रेम करते हुए बस प्रेम का प्रसार करते चलें | अंतिम यात्रा में साथ में 'लगेज' ले जाने का कोई प्राविधान नहीं है , न ही बिजनेस क्लास में ,न ही एकानमी क्लास में | सुगम और आनंददायक यात्रा होने के लिए यही सबसे बड़ी शर्त भी है | हम व्यर्थ में राग ,द्वेष , इसका , उसका ,किन्तु , परन्तु , कम ,ज्यादा के फेर में पड़ कर अपना 'लगेज' बढाते रहते हैं जो अंतिम यात्रा को पीड़ाकारी और बोझिल बना देता है |

" २१.१२.१२" को अंत नही होगा , इससे मैं भी इत्तिफाक रखता हूँ पर क्यों न हम इसे सच मान कर एक काल्पनिक तैयारी कर ही लें और सभी से प्रेम से कुछ यूं मिलें जैसे कि " कल हो न हो " |

22 टिप्‍पणियां:

  1. कौन जाने......!!!!
    हाँ मगर सारे हिसाब आज ही साफ़ कर लिए जाएँ तो अच्छा......

    अनु

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  2. :):) हम व्यर्थ में राग ,द्वेष , इसका , उसका ,किन्तु , परन्तु , कम ,ज्यादा के फेर में पड़ कर अपना 'लगेज' बढाते रहते हैं जो अंतिम यात्रा को पीड़ाकारी और बोझिल बना देता है |

    कल क्या होगा नहीं पता ...लेकिन यह बात जीवन में उतार लें तो कितना अच्छा हो ।

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  3. ~ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मुक़ाम... वो फिर नहीं आते...~
    इसलिए... दोस्ती, प्यार, अपनेपन से निभाते रहिये... चलते रहिये..... :)

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  4. उत्तर
    1. हाँ ! यह बात तो है । अब तो आपसे मिलने में देर करनी पड़ेगी अन्यथा आप मिली नहीं कि 'क़यामत' ही आ जायेगी ।

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  5. उन पर आपका यह आख़िरी दांव भी बेकार जाएगा :-)

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  6. कल हों न हों इसीलिये सोचते हैं टिपिया दें यहां ताकि सनद रहे।

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  7. श्रीवास्तव जी, मैंने तो यार इसी चक्कर में बिजली, पानी, टेलेफोन और क्रेडिट कार्ड के बिल भी नहीं भरे :)

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  8. विनाश तो निश्व्हित है ,पर कब ,कैसे यह सब भविष्य के गर्भ में है और भविष्य कोई नहीं जनता .बड़ी बड़ी भविष्य वाणी करने वाले खुद ही भ्रमित है औरों को भी भ्रमित करते है और दहशत फैलाते है.http://kpk-vichar.blogspot.in

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  9. कौन जाने ये प्रलय कब आएगा कब ख़तम होगी ये दुनिया, लेकिन एक साथ ना सही अलग - अलग ही सही ख़तम तो होनी है ना ये दुनिया हर किसीके लिए तो क्यों ना ...
    "क्यों न हम इसे सच मान कर एक काल्पनिक तैयारी कर ही लें और सभी से प्रेम से कुछ यूं मिलें जैसे कि " कल हो न हो " | "

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  10. अभी तक तो कुछ हुआ नहीं ......आगे का पता नहीं :P

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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