शनिवार, 30 मई 2015

" चाँदी का वर्क ....."


आहिस्ता से भीतर आई ,
एक मंद बहार सी तुम ,
ख्यालों में कुछ और था ,
बेख्याली में दखल तुम ,
लफ्ज़ होंठों पे सजे यूँ ,
सरगम सजी हो जैसे सितार पे ,
पलकें उठाईं थीं ऊपर तुमने ,
अवाक मैं निर्वात आलम ,
आफताब सी दमक ,
और माहताब सा चेहरा ,
काजल की लकीर ,
ज्यों शाख हो नजमों की ,
तितली सी पलकें ,
और चाँद सी तबस्सुम ,
गोया वर्क हो ,
चांदी की जैसे ,
खुदा के नूर पे ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. खुदा का नूर सुंदर है, चांदी का वर्क भी... :)

    वैसे पहले मुझे चांदी के वर्क वाली मिठाइयाँ अच्छी नहीं लगती थीं, लगता था खराब हैं इसलिए सजाया गया है...

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, क्लर्क बनाती शिक्षा व्यवस्था - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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