रविवार, 20 सितंबर 2015

" अपनी बीबी की तारीफ ......."



अभी अभी पता चला कि आज अपनी बीबी की तारीफ करने का दिन है । 'सोशल मीडिया' पर बहुत 'एक्टिव' रहने में यह भी भय रहता है कि जो काम बाकी लोगों ने कर दिया और आपने नहीं किया या बाद में किया तो लगता है जैसे 'आई आई टी' में 'सेलेक्शन' तो हो गया पर 'रैंक' बहुत आखिर की आई ,यानी होना न होना बराबर । जैसे ही पता चला कि आज तारीफ़ करनी है ,अपनी बीबी की तो सोचने लगा (निवेदिता) अपनी बीबी के बारे में । मेरे अनुसार तारीफ जिसकी करनी हो वह एक अलग थलग दिखने वाला शख्स सा तो होना चाहिए । मैं तो इन्हे अलग कर देख ही नहीं पाता । जिसे अपनी तारीफ करना नहीं आता , वह अपनी बीबी की तारीफ नहीं कर सकता और मुझे आत्मप्रशंसा करना नहीं आता ।

अक्सर मैने अपने दोस्तों को अपनी बीबियों की तारीफ उनके सामने ही करते देखा है ,परन्तु मुझे लगता है जैसे वह किसी स्वार्थवश या दिखावे के तौर पर ही करते हैं और उस समय उनकी बीबियाँ भी मुझे असहज ही लगती हैं । यह बात और है कि मुझे सुनने को मिल जाता है कि एक आप हैं कि आपके मुंह से दो बोल नहीं फूटते , फिर भी मै चुप रह जाता हूँ । कैसे कहूँ कि मेरा विवेक ,मेरी शक्ति ,मेरा सामर्थ्य ( जो तुम हो ) बहुत अच्छा है ।

आज अवसर है तो  लिख कर ही तारीफ़ कर देता हूँ कि मेरे बेटों की माँ बहुत प्यारी है । तुम तो (मेरी बीबी ) मुझसे मानसिक तौर पर 'वाई फाई' से और 'ब्लू टूथ' से 'वेल कनेक्टेड' हो , अक्सर कुछ कहने से पहले ही सब समझ लेती हो और जहाँ तक बात एक दूसरे को अपनी नज़र में बसा कर रखने की है ,उसमे तो हमारी आँखें आपस में 'ऑप्टिकल फाइबर' से 'कनेक्टेड' ही है ,सपना भी रात को मैं देखता हूँ तो सुबह उसे बताती तुम हो ।

यूँ ही खिलखिलाहट बनी रहे ,क्योंकि इसी खिलखिलाहट को देख कर ही 'हम तीनो' भी खिल उठते हैं ।