शनिवार, 29 जुलाई 2017

" मै ,तुम और हम ......."


लोग बारिश की तमन्ना रखते हैं,
हम तो ओस में ही महक उठते हैं।
लकीरें थी तो अमीरी की मेरे हाथों में,
इश्क में उनके इश्क फकीरी से कर बैठे।
जानकर जान का हाल जानते नही वो,
जान जाती उनकी भी है मेरी जान पर।
सलामत रहे वो अपनी दरों दीवार में,
हम उनकी खुशबुओं में तसल्ली कर बैठे।

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

" वो नाम एक.........."


लिखो कुछ .... उसने कहा।
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लिखा तो कितनी बार
वो नाम एक
मिटाया कितनी बार
वो नाम एक
महक जाती हैं
अंगुलियाँ मेरी
जब जब लिखता
वो नाम एक
मन्त्र सुना तो नही
मन्त्र पढ़ा भी नही
पर मन्त्र तो है
वो नाम एक
गुनगुनाता हूँ जब
वो नाम एक
जादू सा होता है
सिहरता हूँ
मचलता हूँ
नाच सा उठता हूँ
लिखना आसां नही होता
अब वो नाम एक
रात ही सुबह हो जाये
नींद स्याही बन जाये
वो मिटाया करे
मैं लिखता ही रहूं
वो नाम एक
वो प्यार एक।

शनिवार, 1 जुलाई 2017

" प्लीज़........."

आदरणीय/या प्रधानाचार्य/या
आपने संकल्प दिलाया था कि आज पहली जुलाई को #हिन्दीब्लॉगिंगदिवस के रूप में मनाये जाने के उपलक्ष्य में ब्लॉग लेखन किया जाना अनिवार्य है।
सादर अवगत कराना है कि कार्यालय में अचानक से व्यस्तता बढ़ जाने के कारण देर शाम लगभग रात साढ़े नौ बजे तक वापस आ पाता हूँ। क्लांत मन और शरीर फिर खा पी कर 11 बजे तक ढुलक जाता है।
सुबह फिर साढ़े पांच या छः बजे तक नींद तोड़कर उठना फिर स्वास्थ्य के लिए तनिक घूमना टहलना ,दो तीन कप चाय पीना ,फिर घर के लिए दूध सब्जी लाना ,इसी बीच दस बारह फोन कॉल लेना जो (अमूमन ) एक काल 3 या 4 मिनट की होती है, फिर नहाते श्रृंगार करते पौने दस तक पुनः कार्यालय के लिए निकलना होता है।
ब्लॉगिंग में प्रायः यह प्रयास होता है सभी का, वह विषय या प्रसंग लिखने का ,जिसे पढ़ना सभी को रुचिकर लगे। अब ऐसी परिस्थिति में शांतिपूर्वक कुछ भी सोच पाना और लिखना नितांत असहज है।
अतः आपसे सादर निवेदन है कि इन विषम परिस्थितियों को देखते हुए मुझे इस संकल्प से मुक्त करते हुए किसी समय सीमा में न बांधा जाए।
समय मिलते ही "जी एस टी" से भी ज्यादा मारक पोस्ट लेकर उपस्थित होऊंगा।
आपका आज्ञाकारी
एक ब्लॉग लेखक (जो समय की न्यूनता से ग्रसित है)

मंगलवार, 2 मई 2017

"खामोश निगाहें...."


आंखों ने तेरी
फिर बेचैन किया
कभी तो इतने सवाल
और कभी प्यार ही प्यार किया
खामोश निगाहें
और लरजते होंठ
जैसे बन्द किताब कोई
फड़फड़ाती हो कोने से
यह काजल की लकीरें या
नाँव में लिपटी रस्सी कोई
खींच उसे क्यूँ
तैरा न लूँ दिल मे अपने
"आना करीब तुम
कभी इतना काश
बन्द पलकों के बीच तेरी
एक पलक मेरी भी हो"
आंखों को मूँद ही रखना
जब कभी सामने आऊं तेरे
कहीं इल्जाम न लग जाये इनपे
डुबो कर जान लेने का ।

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

" एक सिंदूरी सी शाम......."


एक सिंदूरी सी शाम थी,
कुछ उजली सी यादें थीं,
सामने समंदर था किनारा था,
रेत थी भर नज़र नज़ारा था,
लहरें उमड़ती पास उसके आती,
दौड़ती पकड़ती वह उन्हें पांव से,
पर लहरें ठहरी कब कहाँ,
उन्हें तो जाना होता वापस न,
किनारों से कर किनारा,
फिर समंदर में ही शायद,
प्यार भी उसका लहरों सा,
आवेग इतना पर ठहरा कभी न,
आती लहरों पर जाती लड़की
या शायद एक नौका क्षितिज पर।

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

"क्या लिखा मेरे लिए........"


सवाल उसका,
क्या लिखा मेरे लिए,
अश्क अश्क स्याही किया
सिर्फ उसके लिए,
सफों पर उसका,
ज़िक्र जब भी किया,
लफ़्ज़ों ने लफ़्ज़ों से,
इश्क कर लिया,
भूल न पाऊँ अब,
कुछ वो ऐसा कर गया,
सीने में मेरे,
दिल अपना धर गया,
सब्र से पी रहा था,
ज़हर जिंदगी का,
अमृत सा कहर,
वह निगाहों से कर गया।

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

" कितनी शामें बीत गई यूं......."


सो लो न आज कांधे पर,
अरसा हुआ सहारा लिए,
कुछ सांसे तुम्हारी हो,
कुछ बीच मे हमारी हो,
थाम अंगुलियां यूं हथेलियों में,
कह जाओ सब वो ख्वाब अपने,
कितनी शामें बीत गई यूं,
बेचैनी में तब्दील हुए।

गुरुवार, 23 मार्च 2017

" प्यार की प्रकृति ........."


सूने आसमान पे चाँद,
उजले माथे पे बिंदिया,
चाँद पर तैरते बादल,
आँखों से रिसता काजल,
बुलबुल की आवाज़,
जल तरंग सी साज़,
रेशम रेशम सी हवा,
या अँगुलियों की थिरकन,
प्रकृति सा प्यार है ये
या प्यार की प्रकृति
आसमां ताकते ताकते
प्यार जमीं पर हो गया।